अधोहस्ताक्षरी को उपर्युक्त विषय पर दिनांक 26 सितंबर, 2011 के कार्यालय ज्ञापन संख्या 372/19/2011 एवीडी-III (भाग.I) का संदर्भ लेने का निदेश हुआ है, जिसमें अनुशासनात्मक मामलों में सीवीसी के साथ दूसरे चरण के परामर्श को समाप्त करने का प्रावधान किया गया था। तथापि, उन मामलों में जहां मौजूदा नियमों/अनुदेशों के तहत संघ लोक सेवा आयोग के साथ परामर्श अपेक्षित नहीं है, केन्द्रीय सतर्कता आयोग के साथ दूसरे स्तर का परामर्श जारी रखा जाना था। इसके अतिरिक्त, सीवीसी ने यह निर्धारित करते हुए दिनांक 07.12.2012 को एक परिपत्र जारी किया, जिसमें अनुशासनिक प्राधिकारी (डीए) कार्यवाहियों की समाप्ति पर कोई सांविधिक शास्तियां न लगाने का अनंतिम प्रस्ताव करते हैं, वहीं संयुक्त मामलों में शामिल केन्द्र सरकार के समूह ‘क’ अधिकारियों, अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों और केन्द्र सरकार के ऐसी अन्य श्रेणियों के अधिकारियों को शामिल करते हुए केन्द्रीय सतर्कता आयोग के साथ दूसरे चरण का परामर्श जारी रहेगा।
2. इस विषय पर स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां मंत्रालय और विभाग उपर्युक्त दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं जिसके कारण अनुशासनात्मक मामलों के निपटान में देरी हो रही है।
3. इस मामले पर संघ लोक सेवा आयोग और केन्द्रीय सतर्कता आयोग के परामर्श से विचार किया गया है और निम्नलिखित पर जोर दिया गया है:
(i) ऐसे सभी मामले, जिनमें अनुशासनिक प्राधिकारी कार्यवाहियां समाप्त होने के बाद शास्ति लगाने का निर्णय लेता है और जहां मौजूदा नियमों/अनुदेशों के तहत संघ लोक सेवा आयोग से परामर्श अपेक्षित है, उन्हें दूसरे स्तर के परामर्श के लिए केन्द्रीय सतर्कता आयोग को नहीं भेजा जाएगा।
(ii) दिनांक 03 दिसम्बर, 2014 के सीवीसी के परिपत्र 8/12/14 में यह निर्धारित किया गया है कि ऐसे सभी मामले जहां अनुशासनिक प्राधिकारी ने कोई कार्रवाई करने का प्रस्ताव किया है, जो कि आयोग की प्रथम स्तर के परामर्श से अलग है, उसे दूसरे स्तर का परामर्श लेने के लिए आयोग को भेजा जाता रहेगा। इस संबंध में केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा अब यह स्पष्ट किया गया है कि उपर्युक्त परिपत्र केवल केन्द्रीय सरकारी उपक्रमों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा स्वायत्तशासी निकायों आदि के अधिकारियों सहित राष्ट्रपति से इतर किसी प्राधिकारी द्वारा नियुक्त व्यक्तियों के अनुशासनिक मामलों पर ही लागू होता है। अतः उपर्युक्त अनुदेश केन्द्र सरकार की समूह क सेवाओं, अखिल भारतीय सेवाओं (एआईएस) और केन्द्र सरकार के अधिकारियों की ऐसी अन्य श्रेणियों से संबंधित मामलों पर लागू नहीं होते हैं, जहां निर्धारित शास्तियों में से कोई भी अधिरोपित करने से पूर्व संघ लोक सेवा आयोग से परामर्श आवश्यक है।
4. ऐसी स्थिति में जहां विभागीय कार्यवाही के समापन पर, अनुशासनिक प्राधिकारी का अस्थायी विचार है कि केंद्र सरकार की समूह 'क' सेवाओं, अखिल भारतीय सेवाओं (एआईएस) और केंद्र सरकार के अधिकारियों की ऐसी अन्य श्रेणियों के अधिकारियों के संबंध में कोई औपचारिक जुर्माना लगाने की आवश्यकता नहीं है और सीवीसी के साथ दूसरे चरण के परामर्श के लिए मामले को संदर्भित करता है और यदि सीवीसी जुर्माना लगाने की सलाह देता है जिस पर विचार के उपरांत अनुशासनिक प्राधिकारी अस्वीकार कर देता है तो यह अनुशासनिक प्राधिकारी और सीवीसी के बीच असहमति का मामला बन जाता है तब मानक अनुदेशों के अनुसार इसका समाधान डीओपीटी को करना होता है।
5. अत: सभी मंत्रालयों/विभागों को इन अनुदेशों का कड़ाई से अनुपालन करने की सलाह दी जाती है।